उस मासूम की आँखों में भूख देखता हूँ,
और उसकी ज़ुबान से निकला-
“बूटपोलिश वाला”
जब मेरे कानों से टकराता है
मेरे अंदर का इंसान थोड़ा सा और मर जाता है,
अजीब कशमकश में, खुद को तब मैं पाता हूँ
क्या अपने जूते पोलिश कराऊँ इस बच्चे से?
ज़मीर इजाज़त नहीं देता
पर उसकी भूख के आगे
मैं छोटा बन जाता हूँ,
खुद्दार होगा, तभी भीख नहीं मांग रहा
इसीलिए मुफ़्त के पैसे भी नहीं लेगा
यही सोच के अपना एक जूता आगे बढ़ाता हूँ,
उन छोटे कोमल हाथों से
मेरे जूतों पर
जब ब्रुश वह फिराता है,
मेरे अंदर का इंसान थोड़ा सा और मर जाता है।
Friday, 1 June 2018
बूट पोलिश वाला
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