Thursday, 4 December 2025

दृष्टिकोण में संतुलन

मोह और घृणा के बीच संतुलन

जीवन में भावनाएँ महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि वे ही हमारे रिश्तों, निर्णयों और विचारों को रूप देती हैं। परंतु जब यही भावनाएँ अति रूप ले लेती हैं, तो सत्य और वास्तविकता धुंधली हो जाती है। यही कारण है कि कहा गया है — मोह इतना न हो कि बुराइयाँ छुप जाएँ और घृणा इतनी न हो कि अच्छाइयाँ दिख ही न पाएं।

जीवन में अक्सर मोह हमें बुराइयों को देखने नहीं देता… और घृणा अच्छाइयों को स्वीकारने से रोक देती है। सच्ची समझ इसी में है कि हम दोनों पहलुओं को देखें — अच्छाइयों को सराहें और कमियों को स्वीकार कर आगे बढ़ें।

मोह व्यक्ति को पक्षपाती बना देता है। किसी से अत्यधिक लगाव होने पर हम उसकी कमियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और उसकी गलतियों को भी सही ठहराने लगते हैं। इसके विपरीत, घृणा मन को इतना संकुचित कर देती है कि व्यक्ति की अच्छाइयाँ भी हमें दिखाई नहीं देतीं। इन दोनों स्थितियों में हमारा निर्णय और समझ दोनों कमजोर हो जाती हैं।

सही मार्ग वही है जिसमें हम संतुलित दृष्टिकोण अपनाएँ। कोई भी मनुष्य पूरी तरह अच्छा या पूरी तरह बुरा नहीं होता। हर व्यक्ति में गुण और अवगुण दोनों होते हैं। यदि हम प्यार में विवेक और आलोचना में न्याय बनाए रखें, तभी सच्चाई को पहचान सकते हैं। यह संतुलन न केवल रिश्तों को स्वस्थ बनाता है बल्कि हमें एक बेहतर इंसान भी बनाता है।

अतः हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए सत्य, निष्पक्षता और सकारात्मकता को प्राथमिकता देनी चाहिए। यही जीवन की परिपक्वता है और यही मानवता की असली पहचान।

चाहे लोग हों, काम हो या परिस्थितियाँ — हमारा दृष्टिकोण निष्पक्ष, संवेदनशील और उत्साह बढ़ाने वाला होना चाहिए। जब हम अच्छाई ढूँढते हैं, तो वही फैलाते हैं। और जब हम कमियों को समझते हैं, तो उनसे सीखकर आगे बढ़ते हैं। आइए… ज़मीन से जुड़े रहें, दयालु रहें, और संतुलित रहें।

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