Tuesday, 11 November 2025

अच्छे विचार से ही हम अपने उद्देश्यों तक पहुंच सकते हैं


मनुष्य को अन्य जीव-जंतुओं से इसकी विचारशीलता ही अलग करती है। विचारशीलता अगर सकारात्मक रूप में है तब वह व्यक्ति को महान, अच्छा इंसान और समाज सुधारक बनाती है। लेकिन यदि यह नकारात्मक रूप में है तब वह मनुष्य को विनाश की तरफ ले जाती है। राक्षस हो या देवता, यह दोनों मनुष्य रूप में ही होते हैं। लेकिन दोनों में अंतर सिर्फ विचारों का ही होता है। जिनके विचार नकारात्मक होते हैं, वे राक्षसों की श्रेणी में रखे जाते हैं, और जिनके विचार सकारात्मक होते हैं, जो सबको आपस में जोड़ते हैं, ऐसे लोग ही देवता कहलाते हैं। देवत्व सुविचार से ही विकसित होता है।

विचारों से हममें संवेदना उत्पन्न होती है और विचार ही हमें असंवेदनशील बनाते हैं। एक संवेदनशील व्यक्ति सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि परिवार, समाज, देश और दुनिया का भला कर सकता है। संवेदना हमें सकारात्मक सोच की ओर लेकर जाती है। लेकिन यही विचार अगर नकारात्मक होते हैं तो वे व्यक्ति के विचारों को विकलांग बना देते हैं। सकारात्मक विचारों वाले लोग रचनात्मक एवं सर्जनशील होते हैं। वे हमेशा निर्माण की सोचते हैं और दूसरों का कष्ट नहीं देख सकते। वे जानते हैं कि कष्ट हमेशा व्यक्ति को गलत विचारों की ओर धकेलता है। इसलिए मदद के लिए उनका हाथ हमेशा आगे रहता है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार विचारशील व्यक्ति दूसरों से अच्छी बातें तो सीखते हैं, लेकिन वह उनके जैसे भी नहीं बनते हैं। दरअसल कुविचार की प्रकृति हमें उनका दास बनाने की होती है, जबकि सुविचार हमें अपना मालिक बनाते हैं। उनका यह भी कहना है कि विचारशील व्यक्ति जब तक अपने आप में विश्वास पैदा नहीं कर लेता है, तब तक वह ईश्वर में भी विश्वास नहीं करता। वह अपने आप से बात करता रहता है, स्वयं से सवाल करता है, तर्क करता है। जबकि जो ऐसा नहीं करते, वे इस दुनिया के सबसे अच्छे इंसान से मिलने से सदैव वंचित रहते हैं। विचारशील व्यक्ति के विचारों से उनके पूरे जीवन की झांकी देखने को मिल जाती है। वह लोगों के भले का विचार करता है, और ऐसी दुनिया में जीता है, जहां निगेटिविटी के लिए कोई स्पेस नहीं होता। और जब कोई इतना पॉजिटिव हो जाता है तो सफलता उसके कदम चूमने में तनिक भी देर नहीं करती है।

दुनिया के महान दार्शनिक अरस्तु के अनुसार विचारशीलता एक तर्कसंगत सोच की प्रतिक्रिया होती है। उनके अनुसार जो भी व्यक्ति यह जानता है कि क्या करने से सबका भला होगा, वही विद्वान है। सबकी भलाई सोचने में काफी विचार करना होता है, इसलिए विचारशील व्यक्ति अक्सर कम बोलते हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो बिलकुल सटीक बोलते हैं। अगर हममें सुविचार हैं तो वे चेहरे पर दमकते हैं। लेकिन कुविचार हैं तो चेहरा अपने-आप ही मलिन पड़ता जाता है।

भगवद्गीता के अनुसार व्यक्ति विचारशील ही है। मानव जीवन केवल खाने, सोने, बच्चे पैदा करने के लिए ही नहीं होता है, क्योंकि यह सभी गुण तो पशु, पक्षियों में भी पाए जाते हैं। मानव अपनी विद्वता, विचारशीलता और कार्य-कारण को जानने की क्षमता के कारण ही पशु, पक्षी और कीट-पतंगों से भिन्न होता है। वेदों के अनुसार भी विचारशीलता और कार्य-कारण संबंध को जानने की वजह से ही मनुष्य अन्य पशु, पक्षियों से अलग होता है।

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