Monday 6 January 2020

स्त्रियाँ, कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं।

स्त्रियाँ,

कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं।

वो सहेजती हैं।
संभालती हैं।
ढकती हैं।
बाँधती हैं।

उम्मीद के आख़िरी छोर तक

कभी तुरपाई कर के।
कभी टाँका लगा के।
कभी धूप दिखा के।
कभी हवा झला के।
कभी छाँटकर।
कभी बीनकर।
कभी तोड़कर।
कभी जोड़कर।

देखा होगा ना👱‍♀ ?

अपने ही घर में उन्हें
खाली डब्बे जोड़ते हुए। 
बची थैलियाँ मोड़ते हुए।
बची रोटी शाम को खाते हुए।
दोपहर की थोड़ी सी सब्जी में तड़का लगाते हुए।
बचे हुए खाने से अपनी थाली सजाते हुए।

दीवारों की सीलन तस्वीरों से छुपाते हुए।
फ़टे हुए कपड़े हों।
टूटा हुआ बटन हो।
 पुराना अचार हो।
सीलन लगे बिस्किट,
चाहे पापड़ हों।
डिब्बे मे पुरानी दाल हो।
गला हुआ फल हो।
मुरझाई हुई सब्जी हो।

या फिर 😧

तकलीफ़ देता " रिश्ता "
वो सहेजती हैं।
संभालती हैं।
ढकती हैं।
बाँधती हैं।
उम्मीद के आख़िरी छोर तक...

इसलिए ,  आप अहमियत रखिये👱‍♀!

वो जिस दिन मुँह मोड़ेंगी
तुम ढूंढ नहीं पाओगे...।

"मकान" को "घर" बनाने वाली रिक्तता उनसे पूछो जिन घर मे नारी नहीं वो घर नहीं मकान कहे जाते हैं।

 सादर प्रणाम 🙏🏻

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