Monday 5 October 2015

मैं और मेरी तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई, अक्सर ये बातें करते हैं..
तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता..

आवारा हैं गलियों में, मैं और मेरी तन्हाई,
जाएँ तो कहाँ जाएँ, हर मोड़ पर रुसवाई,
मैं और मेरी तन्हाई, मैं और मेरी तन्हाई !!

ये फूल से चेहरे हैं, या हँसते हुए गुलदस्ते,
कोई भी नहीं अपना, बेगाने हैं सब रस्ते,
राहें भी तमाशाई, राहें भी तमाशाई,
मैं और मेरी तन्हाई, मैं और मेरी तन्हाई !!

मैं और मेरी तन्हाई, अक्सर ये बातें करते हैं..
तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता..

अरमान सुलगते हैं, सीने में चिता जैसे,
कातिल नज़र आती हैं, दुनिया के हवा जैसे,
रोती हैं मेरे दिल पर, बजती हुई शहनाई,
मैं और मेरी तन्हाई, मैं और मेरी तन्हाई !!

आकाश के माथे पर, तारों का चरागम हैं,
पहलूँ में मगर मेरे, ज़ख्मों का गुलिस्तान हैं,
आँखों से लहू टपका, दामन में बहार आई,
मैं और मेरी तन्हाई, मैं और मेरी तन्हाई !!

मैं और मेरी तन्हाई, अक्सर ये बातें करते हैं..
तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता..

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