यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
मोर चकोर पपीहा कोयल सब को मात करो
सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया
रस में डूबे नगमे की अब तुम बरसात करो
हिज्र की एक लम्बी मंजिल को जानेवाला हूँ
अपनी यादों के कुछ साये मेरे साथ करो
मैं किरनों की कलियाँ चुनकर सेज बना लूँगा
तुम मुखड़े का चाँद जलाओ रौशन रात करो
प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार “क़तील”
गली-गली तकसीम* न तुम अपने जज़्बात करो
* तकसीम – बाँटना
क़तील शिफ़ाई
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